नव संवत्सर वेला हो… बेशुमार खुशियों का मेला

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गोपाल प्रभाकर

यह नव वर्ष की शुभारम्भ वेला है। यही तो वो घड़ी है, जब हर व्यक्ति आने वाले वर्ष में भाग्योदय का सपना संजोता है। लोग सुख, शांति और समृद्धि के लिये शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते हैं।जो भूलें हम से अतीत में हो गई हैं, उनको नहीं दोहराने और अधिक सजग रहने का हम संकल्प लेते हैं। नई उमंग और उल्लास के साथ हम जीवन पथ पर कदम बढ़ाते हैं।

अपने सपनों, संकल्पों एवं योजनाओं के बल पर ईश्वर के अनुग्रह को हम उसी तरह आकर्षित करते हैं, जैसे हरे भरे खेत बादलों से बारिश को आमंत्रित करते हैं। हमें हर सम्भव प्रयास करना होगा कि नया साल मनुष्य को प्रकृति और ईश्वर के नजदीक ले जाये। नव संवत्सर काल की इस वेला में नयेपन और ताजग़ी की अनुभूति हो रही है। हमारे घर जैसे खास मेहमान आने वाला हो तो घर को साफ़ सुथरा बनाने और सजाने में कोई कोर कसर नहीँ छोड़ते। इसी तरह जब हम अपने मन को छल, छद्म, राग, द्वेष, नफऱत और आक्रोश से मुक्त कर देते हैं तो हमारी मनोभूमि स्वच्छ हो जायेगी। उसमें सद्गुणों की फुलवारी सज सकेगी। इससे जीवन में नई खिलावट देखने को मिलेगी। नए वर्ष को सफल और सार्थक बनाने के लिये कुछ सूत्रों का जिक्र हम यहां कर रहे हैं। इन्हें हम अपने जीवन में अंगीकार कर लें तो जीवन धन्य हो जाय।

पहला सूत्र शुभस्य शीघ्र :-

जीवन एक मिनट में नहीं बदल सकता। लेकिन एक मिनट में ऐसा निर्णय जरूर लिया जा सकता है कि पूरा जीवन ही बदल जाय। सचमुच सही समय पर सही निर्णय की अहम भूमिका है। अंतद्र्धवद्व और असमंजस की स्थिति में फैसले नहीं होते। ऐसी मन:स्थिति की वज़ह से बाद में पछतावा होता है। ऐसी हालात नहीं बनने चाहिये कि बाद में कोई तंज करे अब पछताए होत क्या,जब चिडिय़ा चुग गई खेत। हमेशा शांत चित्त होकर निर्णय लेकर हमें अपना मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। शुभ कार्य शीघ्र करने का फैसला सभी को पसन्द आता है।

दूसरा सूत्र ऊर्जावान बनें :-

आज देश को चाहिए ऊर्जावान युवक। उत्साह, उमंग और ऊर्जा से लवरेज युवा। स्वामी विवेकानंद कहा करते थे, आज देश को चाहिए फौलाद की नसें, लोहे की मांसपेशियां और ऐसी इच्छा शक्ति जो आकाश की ऊँचाई का स्पर्श कर सके और पाताल की गहराई को नाप सके। हमारे नौजवानों को चाहिए कि हाथ की लकीरों पर भरोसा करना छोड़ दें और अपने हौसले बुलन्द बनाये रखें। इस सम्बन्ध में राहत इन्दौरी का एक शेर याद रखने लायक है, तूफानों से नजऱ मिलाओ, सैलाबों पर वार करो। मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो।

तीसरा सूत्र है स्वधर्म स्वदेश :-

यहाँ स्वधर्म का मतलब हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या जैन धर्म से नहीं है। एक नागरिक के नाते जो जिम्मेदारी हमें मिली है, वहीं है धर्म। किसी को डॉक्टर की जिम्मेदारी मिली है तो किसी को शिक्षक की। कोई खेती बाड़ी करता है तो कोई उद्योगपति की जिम्मेदारी निभाता है। जो काम उसने चुना है, वही है उसका स्वधर्म। सबको अपनी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभानी है, यही है सच्ची धार्मिकता। इसी प्रकार स्वदेश के प्रति निष्ठा हमारी पहचान होनी चाहिए। जिस देश की मिट्टी में हम पैदा हुए हैं, पले, बढ़े, उस मातृभूमि की रक्षा और मान सम्मान की खातिर हम सदैव तत्पर रहेंगे। ये जुनून, ये उत्कट भावना हर देशवासी के मन में रहना चाहिए।

चौथा सूत्र है शिकायत मुक्त व्यवहार :-

अक्सर हम शिकवा शिकायत में उलझे रहते हैं।जब भी किसी से बात करो अपनी समस्याओं की जुगाली करते रहते हैं। कोई काम हम से न हो पाये तो हम दोष परिस्थितियों या परायों पर डाल देते हैं।यह प्रवृत्ति ठीक नहीं। इसे दूर करने के लिए नए साल संकल्प लेना होगा कि हम अपने विचार और व्यवहार से शिकायत मुक्त रहेंगे।अपनी नाकामयाबी किसी अन्य पर स्थगित नहीँ करेंगे।अपनी लगन और मेहनत से समस्याओं का समुचित समाधान करेंगे।

पांचवा सूत्र है कृतज्ञता :-

प्रतिदिन सुबह सवेरे ईश्वर के प्रति अहोभाव से धन्यवाद व्यक्त करना जरूरी है। उसने हमें जिन्दा रखा। आज आंख खुली,न खुलती तो हम क्या कर लेते। उसने अच्छे से जीने का एक मौका और दिया। इसलिए कुछ अच्छा किया जाय।परिवार के लिए, समाज के लिए,देश के लिए और विश्व मंगल के लिए। यदि ऐसा संकल्प रहा तो अवश्य हमारे हाथों अच्छे से अच्छे काम होंगे।
भारतीय कैलेंडर के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है नव वर्ष। सभी के जीवन में यह वर्ष सुख समृद्धि बढ़ाने के लिए नई ऊर्जा का संचार करे। नव सम्वत्सर सृष्टि की रचना और अनवरत उजास का पर्व है। इसी दिन भारत में गृह, ऋतु, मास एवं पक्ष की गणना शुरू हुई थी। चैत्र मास हमें समर्पण के साथ चैतन्यपूर्वक कर्म और कर्तव्य की प्रेरणा देता है।

-गोपाल प्रभाकर
(लेखक- सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग के पूर्व अति. निदेशक हैं)