रूठ मत जाना अपना कोई तुम्हें, अपना ना कहे,

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इन्दू आचार्य

रूठ मत जाना
अपना कोई तुम्हें, अपना ना कहे,
तो रूठ मत जाना,
इस व्यस्त जिंदगी में,
अपनो का प्यार ना मिले,
तो टूट मत जाना,
गुजारिश है मेरी,
बहतीं नदियाँ बने रहना,
गम के सागर में, डूब मत जाता,
हौंसला रखो, मंजिल पाने का,
गर ना मिले तो,
उस राह से छूट मत जाना।

धन्यवाद जिंदगी
ऐ जिंदगी जरा
संभल कर कदम रख
अनजान हूँ मैं तेरी राहों से,
पर तू तो वाकिफ है ना!
कितनी तेज रफ्घ्तार से अभी तक
इस मुकाम पर ले आई तू
मैंने कितनी ही मंजिलें गिनाई,
तुझे रुकने को,
पर तूने अनसुना कर दिया
और मुझे वक्घ्त के साथ-साथ,
कितनी ही डगरों की सैर करवाई
आखिरकार,
अब रोक दिया तूने मुझे
एक मंजिल पर लाकर
श्ऐ्य जिंदगी
तू हमेशा सहीं थी
पंहुचा दिया तूने मुझे आज,
उस मंजिल पर,
जिसकी बरसो से मुझे तलाश थी,
प्यास थी!
धन्यवाद जिंदगी
-इन्दू आचार्य
पालघर, मुम्बई

रूठ मत जाना अपना कोई तुम्हें, अपना ना कहे